Monday, September 6, 2010

बिहार चुनाव के तारीखों की घोषणा हो गई...


बिहार चुनाव के तारीखों की घोषणा हो गई...

छह चरणों में होगा चुनाव

अक्तूबर 21, 24, 28...नवम्बर 1, 9 और 20..

वोटों की गिनती 24 नवम्बर को

चरण एक - 47 सीट (मधेपुरा, मधुबनी और सहरसा)

चरण दो - 45 सीट (दरभंगा और समस्तीपुर)

चरण तीन - 48 सीट (छपरा, सिवान, वैशाली और मोतिहारी)

चरण चार - 42 सीट (पटना, लखीसराय, खगरिया, बेगुसराय और बांका)

चरण पांच - 35 सीट (गया, आरा, नालंदा और जहानाबाद)

चरण छह - 26 सीट (बक्सर, सासाराम और भभुआ)

दीपावली और छठ के दौरान होंगे चुनाव

Thursday, September 2, 2010

बिहार का डाक्टर...फेल हो गया...


बिहार का डाक्टर...फेल हो गया...

उन दिनों बिहार में चुनाव का वक्त था...पूरा बिहार रंगीला हो उठा था..बड़ी लड़ाई थी...लालू और नितीश की लड़ाई...दो पक्के यारों की भिडंत..हालाँकि दोनों के रास्ते काफी समय पहले अलग हो चुके थे...पर उससे क्या..भाई अलग रहें तो क्या भाई नहीं होते...हर सड़क..हर दिवार अटा पड़ा था झंडे और पोस्टरों से..हरा...केसरिया...नीला...सब था...मगर हरे ने बाजी मार ली थी...खैर...मैं चुनाव कवर करने दूरदर्शन की और से बिहार गया था...पटना में घर था सो वहीँ रुका...

उस दिन भी हर दिन की तरह जागा...छपरा में रैली थी..कांग्रेस मुखिया सोनिया गाँधी और लालू यादव की..जाना किसी और को था...मगर पता चला उनकी तबियत नासाज है और मुझे जाना पड़ेगा...जल्दी जल्दी तैयार हुआ..फ़ौरन गाडी मंगाई और दफ्तर पहुंचा...वहां पुछा मेरे साथ कितने लोग हैं छपरा जाने वाले..पता चला - एक कैमेरामन, एक लाईट मैन, एक साउंड इंजिनियर, एक लाईट असिस्टेंट और एक सिर्फ असिस्टेंट...पांच ये और मेरे ड्राईवर साहब..यानी छे और मैं सात...साथ में उन दिनों ट्रिब्यून के सतीश मिश्र जी भी वहीँ आये हुए थे उन्हें भी जाना था...सो मैंने अपनी गाडी भी माँगा ली...फिर चले हम सफ़र पर...सरकारी अमला साथ था..चाय वगैरह तो रास्ते में हर २० किलोमीटर पर बनता ही था उनका...किसी तरह समय से पहुंचे..ओबी लगी थी पहले से...जल्दी जल्दी कैमरा लगवाया..

अब छपरा का हाल सुनिए जहाँ देखिये वहीँ नीला निशान...अरे भाई गलती से उत्तर प्रदेश तो नहीं आ गए..मैंने मजकिये लहजे में किसी से कहा तो पता चला बहन मायावती अभी अभी उसी मैदान में अपने सभा को ख़त्म कर निकली हैं...खैर घंटे भर में सब बदल गया...सारा माहौल...लग रहा था जैसा इस मैदान को वर्षों से सोनिया जी और लालू जी का इन्तजार था...

हम खड़े रहे...वहीँ पास में राजद के नेता खड़े थे (अब राजद में नहीं हैं) ..पुछा तो पता चला.."पटना से उड़ गए हैं साहब और मैडम...आने वाले हैं"...

तभी चारों तरफ धुल ही धुल...आकाश में दो हेलीकाप्टर नजर आये..."ए विसुअल बनाओ...बढ़िया...देखो क्या सही नजारा है..और हाँ ऐसा लेना की जनता भी नजर आये...देखो कैसे दौड़ रहे हैं लोग उस ओर ...जैसे दोनों लोग उतर कर इनके पास ही आ जायेंगे..." मैंने अपने कैमरा मैन से कहा...

खैर "रैली" शुरू हुई...पहले छपरा के कुछ नेता लोग आये...एक एक कर इलाके के सभी उम्मीदवार आये...फिर बारी आई बिहार के डाक्टर की...

लालू यादव को बिहार का डाक्टर मैंने नहीं कहा...ये बात तो खुद उन्होंने कही..

लालूजी भाषण देने आये..और बस यहीं पहली बार मुझे अहसास हुआ की राजद का मामला बहुत ढीला है इस बार...वो कहते हैं न बोड़ी लैंग्वेज..लालू यादव के बोड़ी लैंग्वेज से साफ़ नजर आ रहा था हार का खौफ...वो भाषण दे तो रहे थे जनता के लिए...मगर मुखातिब थे सोनिया जी से...हर एक लाइन के पहले मैडम...मैं ये कर दूंगा...मैंने वो कर दिया...अरे भाई वोट किससे मांग रहे हो? अरे मैडम को तो पता ही है आपके बारे में..तभी तो आप सरकार के अंग हैं...बिहार को बताइए...पहली बार ऐसा लगा की बिहार से कांग्रेस को उखाड़ने वाला आज कांग्रेस के आगे नतमस्तक है...

इसी भाषण के दौरान लालू यादव ने कहा "मैडम, मैं बिहार का डाक्टर हूँ...नब्ज पहचानता हूँ...जीत पक्की है..."..मगर मात खा गए...जनता ने दगा दिया...ये मैंने नहीं कहा...ये बात सुनी है..

खैर लालूजी का भाषण ख़त्म हुआ..सोनिया गाँधी ने लोगों से अभिवादन स्वीकार करने के बाद बोलना शुरू किया..लेकिन कभी लालूजी से मुखातिब नजर नहीं आयीं...इशारा साफ़ था..खैर...

भाषण के बाद सबको लगा अब चलें...खेल ख़तम...और यही लालूजी और उनके बाकी लोगों को भी लगा...मगर सोनिया गांधी हर बार की तरह अपनी गाडी में खड़ी जनता के बीच नजर आयीं...अब लालू जी क्या करते...पहली बार लालू जी को गाडी के पीछे भागते देखा..सोनिया आगे आगे अपनी गाडी पर हाथ हिलाते और लालू पीछे पीछे...और उनके भी पीछे थे उनके चेले....किसी ने भीड़ से कहा..."ई काहे दौड़ा ता...एकरो गाडी से हाथ हिलावे के बनेला..." (ये भोजपुरी है- मतलब: ये क्यूँ दौड़ रहे हैं...इनको भी गाडी से हाथ हिलाना चाहिए था)...मगर इनको क्या पता की आनन् फानन में लालू यादव समझे ही नहीं की आगे क्या होगा...एक बार फिर बिहार का डाक्टर फेल नजर आया...

वो दिन था और वोटों की गिनती का दिन...सब पहले से काफी साफ़ नजर आ रहा था....बिहार का डाक्टर हार रहा था...

Friday, April 16, 2010

Is the change for real? I am talking about Bihar…

With CM Nitish Kumar on the day he took oath
I want to clear one thing at the onset…these are just my personal views, with facts gathered from my contacts and people of Bihar; rectification of any error is welcome.

I have seen him closely, observed him and had opportunities to interact with him when he was not the Chief Minister and later too- and I admire him at many counts.

I saw the advent of this man from the leader of the much publicized failed political outfit called Samata Party to the development man and later the Chief Minister of Bihar and one of the most talked about politicians of the country.

It were the elections of 2005, I covered the elections traveling through several parts of the state in tatters – Patna, Jehanabad, Chapra, Champaran, Nalanda, Arrah etc etc. There was no wave but there was an under current in favour of Nitish Kumar. Results came, Nitish and his alliance made a sweeping victory. He was administered the oath of office of the chief minister of Bihar in presence of the big wigs of NDA at the famous Gandhi Maidan in Patna.

Although I belonged to Bihar, for the first time in my life I came to see the reality of the state when I was covering the elections for the then employer of mine, it was really in shambles, tatters. No jobs, no roads, no development….it was best suited to call Bihar a Banana state. The new leadership brought a wave of hope, hope for a drastic change…and that was the huge task Nitish Kumar was carrying on his shoulder.

He assumed charge, worked, and to be truthful no one can question his personal integrity and his capabilities. But, were the hopes of the people of Bihar fulfilled by the government led by Nitish Kumar.

The development man

One thing one has to admit that the roads in Bihar are now much better. If things on the road front moves at the same pace, Bihar can see a sea change, cause roads matter boss.

The second thing which made it to the headlines was the growth rate of Bihar, which at 11.03 percent was just behind that of Gujarat.

Last but not the least, most of the dreaded dons are hardly to be seen moving in their SUVs and MUVs in the state capital, barring a few, most of them are either cooling their heels in prisons or are cut to size.

These were the three main achievements which one can decipher after talking to people in the state, who are watching it closely, am not saying these are the only achievements, I clear myself again.

The master manager
The kind of sea change in the media coverage of Bihar took place after Nitish Kumar took charge as the Chief Minister speaks a lot, a lot about how the perception was changed about the state before anything changed at the ground in the state. Where Lalu failed, Nitish scored the best. And this helped Nitish a lot in moving ahead of his fellow leaders, his stature grew by the day.

The sea of negative coverage was nowhere to be seen. Not that something was not being reported, the way of reporting changed. This can also be seen as a support to bring in a positive change in the state.

We believe what we see!

On November 24, 2009, on the eve of completion of four years of Nitish government, in a single day advertisements worth Rs 1.15 crore were given in 24 different national as well as regional dailies. Wow…and these are not my figures, it’s a fact which came out after an RTI was filed.

These were to highlight the works done by the state government and were released as "Badalta Bihar" and "Nitish Kumar Ke Chaar Saal".

The state government has spent Rs. 64.48 crores in four years over advertisements, with the Lion’s share being spent in the year 2008-09, a staggering Rs 25.25 Crore.

The counts of failure…

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To be continued…