Thursday, September 2, 2010

बिहार का डाक्टर...फेल हो गया...


बिहार का डाक्टर...फेल हो गया...

उन दिनों बिहार में चुनाव का वक्त था...पूरा बिहार रंगीला हो उठा था..बड़ी लड़ाई थी...लालू और नितीश की लड़ाई...दो पक्के यारों की भिडंत..हालाँकि दोनों के रास्ते काफी समय पहले अलग हो चुके थे...पर उससे क्या..भाई अलग रहें तो क्या भाई नहीं होते...हर सड़क..हर दिवार अटा पड़ा था झंडे और पोस्टरों से..हरा...केसरिया...नीला...सब था...मगर हरे ने बाजी मार ली थी...खैर...मैं चुनाव कवर करने दूरदर्शन की और से बिहार गया था...पटना में घर था सो वहीँ रुका...

उस दिन भी हर दिन की तरह जागा...छपरा में रैली थी..कांग्रेस मुखिया सोनिया गाँधी और लालू यादव की..जाना किसी और को था...मगर पता चला उनकी तबियत नासाज है और मुझे जाना पड़ेगा...जल्दी जल्दी तैयार हुआ..फ़ौरन गाडी मंगाई और दफ्तर पहुंचा...वहां पुछा मेरे साथ कितने लोग हैं छपरा जाने वाले..पता चला - एक कैमेरामन, एक लाईट मैन, एक साउंड इंजिनियर, एक लाईट असिस्टेंट और एक सिर्फ असिस्टेंट...पांच ये और मेरे ड्राईवर साहब..यानी छे और मैं सात...साथ में उन दिनों ट्रिब्यून के सतीश मिश्र जी भी वहीँ आये हुए थे उन्हें भी जाना था...सो मैंने अपनी गाडी भी माँगा ली...फिर चले हम सफ़र पर...सरकारी अमला साथ था..चाय वगैरह तो रास्ते में हर २० किलोमीटर पर बनता ही था उनका...किसी तरह समय से पहुंचे..ओबी लगी थी पहले से...जल्दी जल्दी कैमरा लगवाया..

अब छपरा का हाल सुनिए जहाँ देखिये वहीँ नीला निशान...अरे भाई गलती से उत्तर प्रदेश तो नहीं आ गए..मैंने मजकिये लहजे में किसी से कहा तो पता चला बहन मायावती अभी अभी उसी मैदान में अपने सभा को ख़त्म कर निकली हैं...खैर घंटे भर में सब बदल गया...सारा माहौल...लग रहा था जैसा इस मैदान को वर्षों से सोनिया जी और लालू जी का इन्तजार था...

हम खड़े रहे...वहीँ पास में राजद के नेता खड़े थे (अब राजद में नहीं हैं) ..पुछा तो पता चला.."पटना से उड़ गए हैं साहब और मैडम...आने वाले हैं"...

तभी चारों तरफ धुल ही धुल...आकाश में दो हेलीकाप्टर नजर आये..."ए विसुअल बनाओ...बढ़िया...देखो क्या सही नजारा है..और हाँ ऐसा लेना की जनता भी नजर आये...देखो कैसे दौड़ रहे हैं लोग उस ओर ...जैसे दोनों लोग उतर कर इनके पास ही आ जायेंगे..." मैंने अपने कैमरा मैन से कहा...

खैर "रैली" शुरू हुई...पहले छपरा के कुछ नेता लोग आये...एक एक कर इलाके के सभी उम्मीदवार आये...फिर बारी आई बिहार के डाक्टर की...

लालू यादव को बिहार का डाक्टर मैंने नहीं कहा...ये बात तो खुद उन्होंने कही..

लालूजी भाषण देने आये..और बस यहीं पहली बार मुझे अहसास हुआ की राजद का मामला बहुत ढीला है इस बार...वो कहते हैं न बोड़ी लैंग्वेज..लालू यादव के बोड़ी लैंग्वेज से साफ़ नजर आ रहा था हार का खौफ...वो भाषण दे तो रहे थे जनता के लिए...मगर मुखातिब थे सोनिया जी से...हर एक लाइन के पहले मैडम...मैं ये कर दूंगा...मैंने वो कर दिया...अरे भाई वोट किससे मांग रहे हो? अरे मैडम को तो पता ही है आपके बारे में..तभी तो आप सरकार के अंग हैं...बिहार को बताइए...पहली बार ऐसा लगा की बिहार से कांग्रेस को उखाड़ने वाला आज कांग्रेस के आगे नतमस्तक है...

इसी भाषण के दौरान लालू यादव ने कहा "मैडम, मैं बिहार का डाक्टर हूँ...नब्ज पहचानता हूँ...जीत पक्की है..."..मगर मात खा गए...जनता ने दगा दिया...ये मैंने नहीं कहा...ये बात सुनी है..

खैर लालूजी का भाषण ख़त्म हुआ..सोनिया गाँधी ने लोगों से अभिवादन स्वीकार करने के बाद बोलना शुरू किया..लेकिन कभी लालूजी से मुखातिब नजर नहीं आयीं...इशारा साफ़ था..खैर...

भाषण के बाद सबको लगा अब चलें...खेल ख़तम...और यही लालूजी और उनके बाकी लोगों को भी लगा...मगर सोनिया गांधी हर बार की तरह अपनी गाडी में खड़ी जनता के बीच नजर आयीं...अब लालू जी क्या करते...पहली बार लालू जी को गाडी के पीछे भागते देखा..सोनिया आगे आगे अपनी गाडी पर हाथ हिलाते और लालू पीछे पीछे...और उनके भी पीछे थे उनके चेले....किसी ने भीड़ से कहा..."ई काहे दौड़ा ता...एकरो गाडी से हाथ हिलावे के बनेला..." (ये भोजपुरी है- मतलब: ये क्यूँ दौड़ रहे हैं...इनको भी गाडी से हाथ हिलाना चाहिए था)...मगर इनको क्या पता की आनन् फानन में लालू यादव समझे ही नहीं की आगे क्या होगा...एक बार फिर बिहार का डाक्टर फेल नजर आया...

वो दिन था और वोटों की गिनती का दिन...सब पहले से काफी साफ़ नजर आ रहा था....बिहार का डाक्टर हार रहा था...

1 comment:

Ravi Pratap Dubey said...

नब्बे के दशक के उतरार्ध में अबकी बारी अटल बिहारी का नारा बड़ा मशहूर हुआ, अटल जी प्रधानमंत्री बन भी गए, लखनऊ में जगह जगह लड्डू बटे और शरबत पिलाया गया, लगा की कोई अपने बीच का ही प्रधानमंत्री बना है, चाल और चरित्र सब कुछ अपने जैसा ही था. अटल जी ने इसे अपनी राजनितिक सक्रियता के अंत तक बरक़रार रखा, लालू प्रसाद की भी यही विशेषता थी पर गरीबो का मसीहा गरीबो से चिढने लगा था, जैसे मुंबई में बाला साहेब मराठी मानुस से वोट डालने की अपील नहीं करते बल्कि उसे आदेश देते है ठीक उसी तरह लालू भी गरीब को अपनी मिलकियत समझने लगे. डाक्टर सामंत बन गया, इस बार भी विधानसभा चुनावों में लालू प्रसाद यादव ही मुद्दा बनते दिख रहे हैं, देखते है की इस बार मरीज़ अपने पुराने डाक्टर के पास आते है या फिर गद्दी पर बैठा इंजीनियर फिर से पारी खेलता है